भगवत का सार हूँ मैं ।

मन में अनेक भाव लिए  ,

बीते कल की आह लिए ,

कल के कल की चाह लिए ।

सम्पूर्ण शून्य हूँ मैं ।

पुराणों का उपदेश लिए, 

सृजन का भीषण विध्वंस लिए ,

मन में तूफान विकराल लिए, 

भगवद्  का सार हूँ मैं ।

अपनो का अहसास लिए, 

मंजिल का गुमान लिए, 

अमर्त्य विश्वास लिए, 

चलता राही हूँ मैं ।

1 thought on “भगवत का सार हूँ मैं ।”

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