तस्वीर – न कहानी न कविता

जब दो सगे वक़्त के अंतराल पे मिलते है । अंजनो जैसे  “कैसे हो तुम?” से शुरु हुईं बात का मकसद और अंत पता  नही होता । पता होता तो सिर्फ कई यादों को दुहराए जाना। 


मानो किसी दराज़ से पुराने किसी एल्बम को निकालना । एल्बम से निकली सभी तस्वीरे एक सी नही होती।कुछ होती है जो फट गई होती , कुछ होती तो है सही सलामत लेकिन उनकी तस्वीरें धुंधली हो गयी होती । इन सब के बाद , कुछ ऐसी तस्वीरें होती जिनकी तस्वीरे और हालत दोनों ठीक होती है। शायद इनकी सही स्थिति का कारण अकेले में भी बार बार दुहराए जाना हो। 


यादों को संयोये रखने के लिए कुछ तस्वीरें मन एल्बम में रखी होती तो कुछ मन में सजी होती। वक़्त के बीतने पे इनकी हालत एक सी हो जाती ।


कुछ यादों की तस्वीरे नही होती तो कुछ तस्वीरों की यादें।कुछ लोगों की तस्वीरे नही होती तो कुछ तस्वीरों के लोग ।

Leave a comment